प्रक्षेपक
From जैनकोष
( गोम्मटसार जीवकांड/ भाषा/326/700/8 का भावार्थ - पर्यायसमास ज्ञान का प्रथम भेद विषैं पर्याय ज्ञानतैं जितने बंधै तितने जुदे कीएं पर्याय ज्ञान के जेते अविभागप्रतिच्छेद हैं तीहिं प्रमाण मूल विवक्षित जानना । यहु जघन्य ज्ञान है इस प्रमाण का नाम जघन्य स्थाप्या । इस जघन्यकौ जीवराशि मात्र अनंत का भाग दीएं जो प्रमाण आवै ताका नाम प्रक्षेपक जानना । इस प्रक्षेपककौं जीवराशि मात्र अनंत का भाग दीएं जो प्रमाण आवै जो प्रक्षेपक-प्रक्षेपक जानना ।