अर्हदत्त सेठ
From जैनकोष
( पद्मपुराण सर्ग/श्लो.नं.) वर्षायोग में आहारार्थ पधारे गगन विहारी मुनियों को ढोंगी जानकर उन्हें आहार न दिया। पीछे आचार्य के द्वारा भूल सुझाई जाने पर बहुत पश्चात्ताप किया/(92/20-31)। फिर मथुरा जाकर उक्त मुनियों को आहार देकर संतुष्ट हुआ। (92/42)।>