बहिर्यान
From जैनकोष
गर्भान्वय क्रियाओं में आठवीं क्रिया । इस क्रिया में जन्म के दो-तीन अथवा तीन-चार मास पश्चात् अपनी अनुकूलता के अनुसार किसी शुभ दिन तुरही आदि मांगलिक बाजों के साथ शिशु को प्रसूतिगृह के बाहर लाया जाता है । इस क्रिया के समय बंधुजन शिशु को उपहार देते हैं । महापुराण 38.51 -55, 90-92 इस क्रिया में निम्न मंत्र का जाप होता है― उपनयनिष्क्रांतिभागी भव, वैवाहनिष्क्रांतिभागी भव, मुनींद्रनिष्क्रांतिभागी भव, सुरेंद्रनिष्क्रांतिभागी भव, मंदरेंद्राभिषेकनिष्क्रांतिभागी भव, यौवराज्यनिष्क्रांतिभागी भव, महाराज्यनिष्क्रांतिभागी भव और आर्हंत्यराज्यभागी भव । महापुराण 40.135-139