जैनकोष
Menu
Main page
Home
Dictionary
Literature
Kaavya Kosh
Study Material
Audio
Video
Online Classes
Games
Home
Dictionary
Literature
Kaavya Kosh
Study Material
Audio
Video
Online Classes
Games
What links here
Related changes
Special pages
Printable version
Permanent link
Page information
Recent changes
Help
Create account
Log in
जैन शब्दों का अर्थ जानने के लिए किसी भी शब्द को नीचे दिए गए स्थान पर हिंदी में लिखें एवं सर्च करें
Actions
Page
Discussion
View source
View history
लाटी संहिता
From जैनकोष
Revision as of 17:06, 24 October 2022 by
Jyoti Sethi
(
talk
|
contribs
)
(
diff
)
← Older revision
| Latest revision (diff) | Newer revision → (diff)
षं. राजमल्लजी ने ई. 1584 में रचा था। यह श्रावकाचार विषयक ग्रंथ है। इसमें 7 सर्ग और कुल 1400 श्लोक हैं। (तीर्थंकर महावीर और उनकी आचार्य परम्परा /4/80)।
पूर्व पृष्ठ
अगला पृष्ठ
Categories
:
ल
चरणानुयोग
इतिहास