मतिज्ञानावरण
From जैनकोष
सिद्धांतकोष से
(देखें ज्ञानावरण-3.2 )।
पुराणकोष से
मतिज्ञान को रोकने वाला कर्म । इसके उदय से जोव विकलांगी होते हैं । इस कर्म का उदय उन जीवों के होता है जो हिंसा आदि पाँच पापों में अपनी इच्छा से प्रवृत होते हैं । श्रीजिनेंद्र द्वारा उपदिष्ट तत्त्वार्थ को उन्मत्त पुरुष के समान यद्वा-तद्वा रूप से ग्रहण करते हैं और सच्चे तथा झूठे दोनों देव, शास्त्र, गुरु, धर्म, प्रतिमा आदि को समान मानते हैं । दूसरों को छल से ठगने से उद्यत जो पुरुष खोटी शिक्षा देते हैं और जो अज्ञानी पुरुष सद्-असद् विचार के बिना धर्म के लिए सच्चे और झूठे देव-शास्त्र-गुरुओं की भक्तिपूर्वक पूजा करते हैं वे इस कर्म के उदय से दुर्बुद्धि और अशुभ प्रवृत्ति के होते हैं । वीरवर्द्धमान चरित्र 17.111-112, 129-130