GP:रत्नकरंड श्रावकाचार - श्लोक 37 - टीका हिंदी
From जैनकोष
जिनेन्द्र भक्त सम्यग्दृष्टि जीव यदि स्वर्ग जाते हैं तो वहाँ इन्द्र बनकर देव और देवियों की सभा में चिरकाल तक-सागरों पर्यन्त रमण करते हैं-क्रीड़ा करते हैं । वहाँ पर वे अणिमा, महिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशित्व, वशित्व और कामरूपित्व इन आठ ऋद्धियों से सम्पन्न होते हैं और अपने शरीर सम्बन्धी अवयवों की पुष्टि-परिपूर्णता सहित सर्वदा हर्षित रहते हैं तथा अन्य देवों में नहीं पायी जाने वाली उत्तम शोभा युक्त होते हैं ।