GP:रत्नकरंड श्रावकाचार - श्लोक 50 - टीका हिंदी
From जैनकोष
हिंसादि पापों के त्याग-रूप लक्षण से युक्त जिस चारित्र का पहले वर्णन किया है वह चारित्र सकल और विकल के भेद से दो प्रकार का होता है । उनमें सकल-चारित्र परिपूर्ण महा-व्रत-रूप कहा है, जो बाह्य और आभ्यन्तर समस्त परिग्रह के त्यागी मुनियों के होता है । विकल-चारित्र देश-चारित्र-रूप है, जो पंच अणु-व्रत के धारक परिग्रह से सहित गृहस्थों के होता है ।