GP:रत्नकरंड श्रावकाचार - श्लोक 57 - टीका हिंदी
From जैनकोष
अकृशचौर्य का अर्थ स्थूल चोरी है । दूसरे का द्रव्य रखा हुआ हो, पड़ा हो, भूला हुआ हो, वा शब्द सर्वत्र परस्पर सम्मुचय के लिए है ऐसे धन को बिना दिये न स्वयं लेता है और न उठाकर अन्य को दे देता है। इस स्थूल चोरी से उपारमणं- निवृत्त होना यह अचौर्याणुव्रत है ।