GP:रत्नकरंड श्रावकाचार - श्लोक 60 - टीका हिंदी
From जैनकोष
ब्रह्मचर्याणुव्रत के पाँच अतिचार हैं --
- अन्यविवाहाकरण कन्यादान को विवाह कहते हैं । अपनी या अपने आश्रित बन्धुजनों की सन्तान को छोडक़र अन्य लोगों की सन्तान का विवाह प्रमुख बनकर करना, वह अन्य विवाहाकरण है । किन्तु सहधर्मी भाई के नाते उनके विवाह में सम्मिलित होने में कोई निषेध नहीं है ।
- अनंगक्रीडा कामसेवन के निश्चित अंगों को छोडक़र अन्य अंगों से क्रीड़ा करना ।
- विटत्व शरीर से कुचेष्टा करना और मुख से अश्लील भद्दे शब्दों का प्रयोग करना विटत्व है ।
- विपुलतृषा कामसेवन की तीव्र अभिलाषा रखना विपुलतृषा है ।
- इत्वरिकागमन परपुरुषरत व्यभिचारिणी स्त्री को इत्वरिका कहते हैं । ऐसी स्त्रियों के यहाँ आना-जाना, उनके साथ उठना-बैठना तथा व्यापारिक सम्पर्क बढ़ाना आदि इत्वरिका गमन है ।