GP:रत्नकरंड श्रावकाचार - श्लोक 72 - टीका हिंदी
From जैनकोष
हिंसा, असत्य, चोरी, अब्रह्म और परिग्रह ये पाँच पाप पापोपार्जन के हेतु हैं । इसलिए इनका मन-वचन-काय और कृत-कारित-अनुमोदना इन नौ कोटि से त्याग करना महाव्रत कहलाता है । यह महाव्रत प्रमत्तसंयतादि गुणस्थानवर्ती विशिष्ट मुनियों के ही होता है, अन्य के नहीं ।