ग्रन्थ:रत्नकरंड श्रावकाचार - श्लोक 87
From जैनकोष
तच्च द्विधा भिद्यत इति --
नियमो यमश्च विहितौ, द्वेधा भोगोपभोगसंहारात्
नियमः परिमितकालो, यावज्जीवं यमो ध्रियते ॥87॥
टीका:
भोगोपभोगसंहारात् भोगोपभोगयो: संहारात् परिमाणात् तमाश्रित्य । द्वेधा विहितौ द्वाभ्यां प्रकाराभ्यां द्वेधा व्यवस्थापितौ । कौ ? नियमो यमच्चे त्येतौ । तत्र को नियम: कश्च यम इत्याह -- नियम: परिमितकालो वक्ष्यमाण: परिमित: कालो यस्य भोगोपगोभसंहारस्य स नियम: । यमश्च यावज्जीवं ध्रियते ॥
यम और नियम
नियमो यमश्च विहितौ, द्वेधा भोगोपभोगसंहारात्
नियमः परिमितकालो, यावज्जीवं यमो ध्रियते ॥87॥
टीकार्थ:
भोग और उपभोग का परिमाण यम और नियम के भेद से दो प्रकार का कहा गया है । जो परिमाण परिमितकाल के लिए अर्थात् समय की मर्यादा लेकर किया जाता है, वह नियम कहलाता है तथा जो जीवनपर्यन्त के लिए धारण किया जाता है वह यम कहलाता है ।