लघिमा विक्रिया ऋद्धि
From जैनकोष
तिलोयपण्णत्ति अधिकार संख्या ४/१०२७ मेरूवमाण देहा महिमा अणिलाउ लहुत्तरो लहिमा। वज्जाहिंतो गुरुवत्तणं च गरिमं त्ति भणंति ।१०२७।
= मेरुके बराबर शरीरके करनेको महिमा, वायुसे भी लघु (हलका) शरीर करनेको लघिमा और वज्रसे भी अधिक गुरुतायुक्त (भारी) शरीरके करनेको गरिमा ऋद्धि कहते हैं। (राजवार्तिक अध्याय संख्या ३/३६/३/२०३/१);( धवला पुस्तक संख्या ९/४,१,१५/७५/५); (च.सा. २१९/२)
अधिक जानकारी के लिए देखें ऋद्धि - 3।