श्लेष
From जैनकोष
गोम्मट्टसार कर्मकांड / जीव तत्त्व प्रदीपिका टीका गाथा 33/30 पर उद्धृत श्लोक नं. 2
"वातः पित्तं तथा श्लेषा सिरा स्नायुश्च चर्म च। जठराग्निरिति प्राज्ञैः प्रोक्ताः सप्तोपधातवः।"
= वात, पित्त, श्लेष्म, सिरा, स्नायु, चर्म, उदराग्नि ये सात उपधातु हैं।
औदारिक शरीर के बारे में अधिक जानकारी के लिये देखें औदारिक - 1।