अननुगामी
From जैनकोष
षट्खंडागम 13/5,5/सूत्र 56/292
तं च अणेयविहं देसोही परमोही सव्वोही हीयमाणयं वड्ढमाणयं अवट्ठिदं अणवट्ठिदं अणुगामी अणणुगामी सप्पडिवादोअप्पडिवादो एयक्खेतमणेयक्खेत ॥56॥
= वह (अवधिज्ञान) अनेक प्रकार है - देशावधि, परमावधि, सर्वावधि, हीयमान, वर्द्धमान, अवस्थित, अनवस्थित, अनुगामी, अननुगामी, सप्रतिपाती, अप्रतिपाती, एक क्षेत्रावदि और अनेक क्षेत्रावधि।
राजवार्तिक 1/224/81/27
अनुगाम्यननुगामिवर्धमानहीयमानावस्थितानवस्थितभेदात् षड्विधः ॥4॥ पुनरपरेऽवधेस्त्रयो भेदाः-देशावधिः परमावधिः सर्वावधिश्चेति। तत्र देशावधिस्त्रेधा जघन्य उत्कृष्ट अजघन्योत्कृष्टश्चेति। तथा परमावधिरपि त्रिधा। सर्वावधिरविकल्पत्यादेक एव।..वर्द्धमानो, हीयमान अवस्थितः अनवस्थितः अनुगामी अननुगामी अप्रतिपाती प्रतिपाती इत्येतेऽष्टौ भेदा देशावधेर्भवंति। हीयमानप्रतिपातिभेदवर्जा इतरे षड्भेदा भवंति परमावधेः। अवस्थितोऽनुगाम्यननुगाम्यप्रतिपाती इत्येते चत्वारो भेदाः सर्वावधेः।
= अवधिज्ञानके अनुगामी, अननुगामी, वर्द्धमान, हीयमान, अवस्थित और अनवस्थित, ये छह भेद हैं। देशावधि, परमावधि और सर्वावधिके भेदसे भी अवधिज्ञान तीन प्रकारका है। देशावधि और परमावधिके जघन्य, उत्कृष्ट और जघन्योत्कृष्ट ये तीन प्रकार हैं। सर्वावधि एक ही प्रकार का है। वर्द्धमान, हीयमान, अवस्थित, अनवस्थित, अनुगामी, अननुगामी, अप्रतिपाती और प्रतिपाती ये आठ भेद देशावधि में होते हैं। हीयमान प्रतिपाती, इन दो को छोड़कर शेष छः भेद परमावधि में होते हैं। अवस्थित, अनुगामी, अननुगामी और अप्रतिपाती ये चार भेद सर्वावधि में होते हैं।
अवधिज्ञान का एक भेद - देखें अवधिज्ञान - 1.6।