अनादृत
From जैनकोष
अनगारधर्मामृत/8/98 अनादृतमतात्पर्यं वंदनायां मदोद्धृतिः। स्तब्धमत्यासन्नभावः प्रविष्टं परमेष्ठिनाम्।98। =
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(वंदना के बत्तीस दोषों में से एक दोष) वंदना में तत्परता या आदर का अभाव अनादृत दोष है, ...
कायोत्सर्ग और वंदना के अतिचारों के लिये देखें व्युत्सर्ग ।