Test5
From जैनकोष
संकेत- अनि0 = अनिवृत्तिकरण गुणस्थान में उस प्रकृति की बंध व्युच्छित्ति से पहला समय; अपू0 = अपूर्वकरण गुणस्थान में उस प्रकृति की बंधव्युच्छित्ति से पहला समय; अप्र0 = अप्रमत्तसंयत; अवि0 = अविरतसम्यग्दृष्टि; क्षपक0 = क्षपकश्रेणी; चतु0 = चतुर्गति के जीव; ति0 = तिर्यंच; तीव्र0 = तीव्र संक्लेश या कषाययुक्त जीव; देश0-देशसंयत; ना0 = नारकी; प्र0 = प्रमत्तसंयत; मध्य0 = मध्य परिणामों युक्त जीव; मनु0 = मनुष्य; मि0 = मिथ्यादृष्टि; विशु0 = अत्यंत विशुद्ध परिणामयुक्त जीव; सम्य0 = सम्यग्दृष्टि; सा0 मि0 = सातिशय मिथ्यादृष्टि; सू0 सा0 = सूक्ष्मसांपराय का चरम समय।
नाम प्रकृति | उत्कृष्ठ अनुभाग | जघन्य अनुभाग |
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ज्ञानावरणीय 5 | तीव्र संक्लेश या कषाययुक्त जीव; चतुर्गति के जीव; मिथ्यादृष्टि | सूक्ष्मसांपराय का चरम समय |
दर्शनावरणीय 4 | तीव्र संक्लेश या कषाययुक्त जीव; चतुर्गति के जीव; मिथ्यादृष्टि | सूक्ष्मसांपराय का चरम समय |
निद्रा, प्रचला | तीव्र संक्लेश या कषाययुक्त जीव; चतुर्गति के जीव; मिथ्यादृष्टि | अपूर्वकरण गुणस्थान में उस प्रकृति की बंधव्युच्छित्ति से पहला समय; |
निद्रा निद्रा, प्रचला प्रचला | तीव्र संक्लेश या कषाययुक्त जीव; चतुर्गति के जीव; मिथ्यादृष्टि | सातिशय मिथ्यादृष्टि;/चरम |
स्त्यानगृद्धि | तीव्र संक्लेश या कषाययुक्त जीव; चतुर्गति के जीव; मिथ्यादृष्टि | सातिशय मिथ्यादृष्टि;/चरम |
अंतराय 5 | तीव्र संक्लेश या कषाययुक्त जीव; चतुर्गति के जीव; मिथ्यादृष्टि | सूक्ष्मसांपराय का चरम समय |
मिथ्यात्व | तीव्र संक्लेश या कषाययुक्त जीव; चतुर्गति के जीव; मिथ्यादृष्टि | सातिशय मिथ्यादृष्टि;/चरम |
अनंतानुबंधी चतु. | तीव्र संक्लेश या कषाययुक्त जीव; चतुर्गति के जीव; मिथ्यादृष्टि | सातिशय मिथ्यादृष्टि;/चरम |
अप्रत्याख्यान चतु. | तीव्र संक्लेश या कषाययुक्त जीव; चतुर्गति के जीव; मिथ्यादृष्टि | प्रमत्तसंयत सन्मुख अनिवृत्तिकरण गुणस्थान में उस प्रकृति की बंध व्युच्छित्ति से पहला समय; |
प्रत्याख्यान चतु. | तीव्र संक्लेश या कषाययुक्त जीव; चतुर्गति के जीव; मिथ्यादृष्टि | प्रमत्तसंयत सन्मुख अनिवृत्तिकरण गुणस्थान में उस प्रकृति की बंध व्युच्छित्ति से पहला समय; |
संज्वलन चतु. | तीव्र संक्लेश या कषाययुक्त जीव; चतुर्गति के जीव; मिथ्यादृष्टि | अनिवृत्तिकरण गुणस्थान में उस प्रकृति की बंध व्युच्छित्ति से पहला समय; |
हास्य, रति | तीव्र संक्लेश या कषाययुक्त जीव; चतुर्गति के जीव; मिथ्यादृष्टि | अपूर्वकरण गुणस्थान में उस प्रकृति की बंधव्युच्छित्ति से पहला समय; |
अरति, शोक | तीव्र संक्लेश या कषाययुक्त जीव; चतुर्गति के जीव; मिथ्यादृष्टि | अप्रमत्तसंयत सन्मुख प्रमत्तसंयत |
भय, जुगुप्सा | तीव्र संक्लेश या कषाययुक्त जीव; चतुर्गति के जीव; मिथ्यादृष्टि | अपूर्वकरण गुणस्थान में उस प्रकृति की बंधव्युच्छित्ति से पहला समय; |
स्त्री, नपुंसक वेद | तीव्र संक्लेश या कषाययुक्त जीव; चतुर्गति के जीव; मिथ्यादृष्टि | तीव्र संक्लेश या कषाययुक्त जीव; चतुर्गति के जीव; मिथ्यादृष्टि |
पुरुष वेद | तीव्र संक्लेश या कषाययुक्त जीव; चतुर्गति के जीव; मिथ्यादृष्टि | अनिवृत्तिकरण गुणस्थान में उस प्रकृति की बंध व्युच्छित्ति से पहला समय; |
साता | क्षपकश्रेणी | मध्य परिणामों युक्त जीव;मिथ्यादृष्टि;सम्यग्दृष्टि |
असाता | तीव्र संक्लेश या कषाययुक्त जीव; चतुर्गति के जीव; मिथ्यादृष्टि | मध्य परिणामों युक्त जीव;मिथ्यादृष्टि;सम्यग्दृष्टि |
नरकायु | मिथ्यादृष्टि;मनुष्य,तिर्यंच; | मध्य परिणामों युक्त जीव;मिथ्यादृष्टि;सम्यग्दृष्टि |
तिर्यंचायु | मिथ्यादृष्टि;मनुष्य,तिर्यंच; | मध्य परिणामों युक्त जीव;मिथ्यादृष्टि;सम्यग्दृष्टि |
मनुष्यायु | मिथ्यादृष्टि;मनुष्य,तिर्यंच; | मध्य परिणामों युक्त जीव;मिथ्यादृष्टि;सम्यग्दृष्टि |
देवायु | अपूर्वकरण गुणस्थान में उस प्रकृति की बंधव्युच्छित्ति से पहला समय | मध्य परिणामों युक्त जीव;मिथ्यादृष्टि;सम्यग्दृष्टि |
नरक द्विक | मिथ्यादृष्टि;मनुष्य,तिर्यंच; | मध्य परिणामों युक्त जीव;मिथ्यादृष्टि;सम्यग्दृष्टि |
तिर्यक् द्विक | मिथ्यादृष्टि;मनुष्य,तिर्यंच; | सप्तम पू. नारकी. |
मनुष्य द्विक | सम्यग्दृष्टि देव, नारकी | मध्य परिणामों युक्त जीव;मिथ्यादृष्टि; |
देव द्विक | क्षपकश्रेणी | मिथ्यादृष्टि, तिर्यंच, मनुष्य |
एकेंद्रिय जाति | मिथ्यादृष्टि देव | मध्य परिणामों युक्त जीव मिथ्यादृष्टि मनुष्य,तिर्यंच;देव, नारकी |
2-4 इंद्रिय जाति | मिथ्यादृष्टि;मनुष्य,तिर्यंच; | मिथ्यादृष्टि मनुष्य,तिर्यंच |
पंचेंद्रिय जाति | क्षपकश्रेणी | तीव्र संक्लेश या कषाययुक्त जीव; चतुर्गति के जीव; मिथ्यादृष्टि |
औदारिक द्विक | सम्यग्दृष्टि देव, नारकी | मिथ्यादृष्टि देव, नारकी |
वैक्रियक द्विक | क्षपकश्रेणी | मिथ्यादृष्टि मनुष्य,तिर्यंच |
आहारक द्विक | क्षपकश्रेणी | मिथ्यादृष्टि मनुष्य,तिर्यंच |
तैजस शरीर | क्षपकश्रेणी | तीव्र संक्लेश या कषाययुक्त जीव; चतुर्गति के जीव; मिथ्यादृष्टि |
कार्मण शरीर | क्षपकश्रेणी | तीव्र संक्लेश या कषाययुक्त जीव; चतुर्गति के जीव; मिथ्यादृष्टि |
निर्माण | क्षपकश्रेणी | तीव्र संक्लेश या कषाययुक्त जीव; चतुर्गति के जीव; मिथ्यादृष्टि |
प्रशस्त वर्णादि 4 | क्षपकश्रेणी | तीव्र संक्लेश या कषाययुक्त जीव; चतुर्गति के जीव; मिथ्यादृष्टि |
अप्रशस्त वर्णादि 4 | तीव्र संक्लेश या कषाययुक्त जीव; चतुर्गति के जीव; मिथ्यादृष्टि | अपूर्वकरण गुणस्थान में उस प्रकृति की बंधव्युच्छित्ति से पहला समय; मध्य परिणामों युक्त जीव;. मिथ्यादृष्टि |
सम चतुरस्र संस्थान | क्षपकश्रेणी | मध्य परिणामों युक्त जीव; मिथ्यादृष्टि |
शेष पाँच संस्थान | तीव्र संक्लेश या कषाययुक्त जीव; चतुर्गति के जीव; मिथ्यादृष्टि | मध्य परिणामों युक्त जीव; मिथ्यादृष्टि |
वज्र ऋषभ नाराच | सम्यग्दृष्टि देव, नारकी | मध्य परिणामों युक्त जीव; मिथ्यादृष्टि |
वज्र नाराच आदि 4 | सम्यग्दृष्टि देव, नारकी | मध्य परिणामों युक्त जीव; मिथ्यादृष्टि |
असंप्राप्त सृपाटिका | मिथ्यादृष्टि देव, नारकी | मध्य परिणामों युक्त जीव; मिथ्यादृष्टि |
अगुरुलघु | क्षपकश्रेणी | तीव्र संक्लेश या कषाययुक्त जीव; चतुर्गति के जीव; मिथ्यादृष्टि |
उपघात | तीव्र संक्लेश या कषाययुक्त जीव; चतुर्गति के जीव; मिथ्यादृष्टि | अपूर्वकरण गुणस्थान में उस प्रकृति की बंधव्युच्छित्ति से पहला समय; |
परघात | क्षपकश्रेणी | तीव्र संक्लेश या कषाययुक्त जीव; चतुर्गति के जीव; मिथ्यादृष्टि |
आतप | मिथ्यादृष्टि देव | तीव्र संक्लेश या कषाययुक्त जीव;मिथ्यादृष्टि भवनत्रिक से ईशान |
उद्योत | मिथ्यादृष्टि देव | मिथ्यादृष्टि देव, नारकी |
उच्छ्वास | सूक्ष्मसांपराय का चरम समय | तीव्र संक्लेश या कषाययुक्त जीव; चतुर्गति के जीव; मिथ्यादृष्टि |
प्रशस्त विहायोगति | क्षपकश्रेणी | मध्य परिणामों युक्त जीव;मिथ्यादृष्टि |
अप्रशस्त विहायोगति | तीव्र संक्लेश या कषाययुक्त जीव; चतुर्गति के जीव; मिथ्यादृष्टि | मध्य परिणामों युक्त जीव;मिथ्यादृष्टि |
प्रत्येक | क्षपकश्रेणी | तीव्र संक्लेश या कषाययुक्त जीव; चतुर्गति के जीव; मिथ्यादृष्टि |
साधारण | मिथ्यादृष्टि मनुष्य,तिर्यंच | मिथ्यादृष्टि मनुष्य,तिर्यंच |
त्रस | क्षपकश्रेणी | |
स्थावर | मिथ्यादृष्टि देव | मध्य परिणामों युक्त जीव;मिथ्यादृष्टि देव मनुष्य,तिर्यंच |
सुभग | क्षपकश्रेणी | मध्य परिणामों युक्त जीव;मिथ्यादृष्टि |
दुर्भग | तीव्र संक्लेश या कषाययुक्त जीव; चतुर्गति के जीव; मिथ्यादृष्टि | मध्य परिणामों युक्त जीव;मिथ्यादृष्टि |
सुस्वर | क्षपकश्रेणी | मध्य परिणामों युक्त जीव;मिथ्यादृष्टि |
दुस्स्वर | तीव्र संक्लेश या कषाययुक्त जीव; चतुर्गति के जीव; मिथ्यादृष्टि | मध्य परिणामों युक्त जीव;मिथ्यादृष्टि |
शुभ | क्षपकश्रेणी | मध्य परिणामों युक्त जीव;मिथ्यादृष्टि, सम्यग्दृष्टि |
अशुभ | तीव्र संक्लेश या कषाययुक्त जीव; चतुर्गति के जीव; मिथ्यादृष्टि | मध्य परिणामों युक्त जीव;मिथ्यादृष्टि, सम्यग्दृष्टि |
सूक्ष्म | मिथ्यादृष्टि मनुष्य,तिर्यंच | मिथ्यादृष्टि मनुष्य,तिर्यंच |
बादर | क्षपकश्रेणी | तीव्र संक्लेश या कषाययुक्त जीव; चतुर्गति के जीव; मिथ्यादृष्टि |
पर्याप्त | क्षपकश्रेणी | तीव्र संक्लेश या कषाययुक्त जीव; चतुर्गति के जीव; मिथ्यादृष्टि |
अपर्याप्त | मिथ्यादृष्टि मनुष्य,तिर्यंच | मिथ्यादृष्टि मनुष्य,तिर्यंच |
स्थिर | क्षपकश्रेणी | मध्य परिणामों युक्त जीव;मिथ्यादृष्टि, सम्यग्दृष्टि |
अस्थिर | तीव्र संक्लेश या कषाययुक्त जीव; चतुर्गति के जीव; मिथ्यादृष्टि | मध्य परिणामों युक्त जीव;मिथ्यादृष्टि, सम्यग्दृष्टि |
आदेय | क्षपकश्रेणी | मध्य परिणामों युक्त जीव;मिथ्यादृष्टि, सम्यग्दृष्टि |
अनादेय | तीव्र संक्लेश या कषाययुक्त जीव; चतुर्गति के जीव; मिथ्यादृष्टि | मध्य परिणामों युक्त जीव;मिथ्यादृष्टि, सम्यग्दृष्टि |
यशःकीर्ति | क्षपकश्रेणी | मध्य परिणामों युक्त जीव;मिथ्यादृष्टि, सम्यग्दृष्टि |
अयशःकीर्ति | तीव्र संक्लेश या कषाययुक्त जीव; चतुर्गति के जीव; मिथ्यादृष्टि | मध्य परिणामों युक्त जीव;मिथ्यादृष्टि, सम्यग्दृष्टि |
तीर्थंकर | क्षपकश्रेणी | नारकी सन्मुख अविरतसम्यग्दृष्टि |
उच्च गोत्र | क्षपकश्रेणी | मध्य परिणामों युक्त जीव;मिथ्यादृष्टि |
नीच गोत्र | तीव्र संक्लेश या कषाययुक्त जीव; चतुर्गति के जीव; मिथ्यादृष्टि | सप्तम पृथ्वी नारकी मिथ्यादृष्टि |
अंतराय 5 | तीव्र संक्लेश या कषाययुक्त जीव; चतुर्गति के जीव; मिथ्यादृष्टि | अपूर्वकरण गुणस्थान में उस प्रकृति की बंधव्युच्छित्ति से पहला समय; |
5. अनुभाग विषयक अन्य प्ररूपणाओं का सूचीपत्र
नाम प्रकृति विषय ज.उ.पद भुजगारादि पद ज.उ.वृद्धि षड्गुण वृद्धि
महाबंध पुस्तक $...पृ. महाबंध पुस्तक .../पृ. महाबंध पुस्तक $...पृ. महाबंध पुस्तक $...पृ.
1. मूल प्रकृति संनिकर्ष 4/172-181/74-79
भंगविचय 4/182-185/79-81 4/285/131-132
अनुभाग अध्यवसाय स्थान संबंधी सर्व प्ररूपणाएँ 4/371-386/168-176 4/360-361/163-164
2. उत्तरप्रकृति संनिकर्ष 5/1-308/1-126
भंगविचय 5/309-313/126-129 5/492-497/276-78 5/617/362
अध्यवसाय स्थान संबंधी सर्व प्ररूपणाएँ 5/626-658/372-398