अनुसमयापवर्तना
From जैनकोष
धवला पुस्तक 12/4,2,7,41/32/1
एसो अणुभागखंडयघादो त्ति किण्ण वुच्चदे। ण, पारद्धपढमसमयादो अंतोमुहुत्तेणं कालेण जो घादो णिप्पज्जदि सो अणुभागखंडघादो णाम, जो पुण उक्कोरणकालेण विणा एगसमएणेव पददि सा अणुसमओवट्टणा। अण्णं च, अणुसमओवट्टणाए णियमेण अणंता भागा हम्मंति, अणुभागखंडयघादे पुण णत्थि एसो णियमो, छव्विहहाणीएखंडयघादुबलंभादो।
= प्रश्न - इसे (अनुसमयापवर्तनाघात को) अनुभागकांडकघात क्यों नहीं कहते? उत्तर-नहीं, क्योंकि, प्रारंभ किये गये प्रथम समय से लेकर अंतर्मुहूर्त काल के द्वारा जो घात निष्पन्न होता है, वह अनुभागकांडकघात है। परंतु उत्कीरण काल के बिना एक समय द्वारा ही जो घात होता है, वह अनुसमयापवर्तना है। दूसरे अनुसमयापवर्तना में नियम से अनंत बहुभाग नष्ट होता है परंतु अनुभाग कांडकघात में यह नियम नहीं है, क्योंकि छह प्रकार की हानि द्वारा कांडकघात की उपलब्धि होती है। विशेषार्थ-कांडक पोरको कहते हैं। कुल अनुभाग के हिस्से करके, एक एक हिस्से का फालि क्रम से अंतर्मुहूर्त काल द्वारा अभाव करना अनुभाग कांडक घात कहलाता है। और प्रति समय अनंत बहुभाग अनुभाग का अभाव करना अनुसमयापवर्तना कहलाती है। मुख्य रूप से यही इन दोनों में अंतर है।
कांडकघात व अनुसमयापवर्तना में अंतर - देखें अपकर्षण - 4।