मृदंगमध्यमव्रत
From जैनकोष
एक व्रत । इसमें क्रमश: दो, तीन, चार, पाँच, चार, तीन और दो उपवास किये जाते हैं । प्रत्येक क्रम के बाद एक पारणा की जाती है । इस प्रकार इसमें तेईस उपवास और सात पारणाएँ की जाती है । इसके करने से क्षीरस्रावि आदि ऋद्धियां, अवधिज्ञान और क्रमश: मोक्ष प्राप्त होता है । हरिवंशपुराण 34.64-65