आयोपास
From जैनकोष
भगवती आराधना / मूल या टीका गाथा 462
तस्स आयोपायविदंसी खवयस्स ओघपण्णवओ। आलोचेंतस्स अणुज्जगस्स दंसेइ गुणदोसे ॥462॥
= जो क्षपक उपर्युक्त कारणों से दोषों की आलोचना करने में भययुक्त होता है उसको आयोपाय दर्शन गुण के धारक आचार्य आलोचना करने में गुण और न करने में हानि होती है इसका निरूपण करते हैं।