इंद्रिय जय
From जैनकोष
चारित्तपाहुड़/ मूल/29 अमण्णुण्णे य मणुण्णे सजीवदव्वे अजीवदव्वे य। ण करेइ रायदोसे पंचेंदियसंवरो अणिओ। =पाँचों इंद्रियों के विषयभूत अमनोज्ञ पदार्थों में तथा स्त्री-पुत्रादि जीवरूप और धन आदि अजीवरूप ऐसे मनोज्ञ पदार्थों में राग-द्वेष का न करना ही पाँच इंद्रियों का संवर है। (मूलाचार/17-21)।
देखें संयम - 2.1