उज्झनशुद्धि
From जैनकोष
मूलाचार/गाथा सं.
ते छिण्णणेहबंधा णिण्णेहा अप्पणो सरीरम्मि। ण करंति किंचि साहू परिसंठप्पं सरीरम्मि।836।
= उज्झणशुद्धि-पुत्र-स्त्री आदि में जिनने प्रेमरूपी बंधन काट दिया है और अपने शरीर में भी ममता रहित ऐसे साधु शरीर में कुछ भी-स्नानादि संस्कार नहीं करते।836।
देखें शुद्धि ।