मिश्र
From जैनकोष
1. आहार का एक दोष–देखें आहार - II.4.4।
2. वसतिका का एक दोष–देखें वसतिका ।
3. एक ही उपयोग में शुद्ध व अशुद्ध दो अंश–देखें उपयोग - II.3।
4. मिश्र चारित्र अर्थात् एक ही चारित्र में दो अंश–देखें चारित्र - 7.7।
5. व्रत, समिति, गुप्ति आदि में युगपत् दो अंश–प्रवृत्ति व निवृत्ति–देखें संवर - 2।
6. संयम व असंयम का मिश्रपना–देखें संयतासंयत - 2।
7. एक ही संयम में दो अंश–प्रमत्तता व संयम–देखें संयत - 2।
8. एक ही श्रद्धान व ज्ञान में दो अंश–सम्यक् व मिथ्या–देखें आगे मिश्र गुणस्थान ।
9. मिश्र प्रकृति–देखें मोहनीय ।