Test 5b
From जैनकोष
अपवाद संख्या | अपवाद गत 41 प्रकृतियाँ |
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1 | साता, असाता व मनुष्यायु इन तीनोंकी उदय व्युच्छित्ति 14 वें गुणस्थानमें होती है पर उदीरणा व्युच्छित्ति 6 ठे में। |
2 | मनुष्यगति, पंचेंद्रिय जाति, सुभग, त्रस, बादर, पर्याप्त, आदेय, यश, तीर्थंकर, उच्चगोत्र इन 10 प्रकृतियोंकी उदय व्युच्छित्ति 14 वें में होती है पर उदीरणा व्युच्छित्ति 13 वें में। |
3 | ज्ञानावरण 5, दर्शनावरण 4, अंतराय 5, इन 14 की उदय व्युच्छित्ति 12 वें में एक आवली काल पश्चात् होती है और उदीरणा व्युच्छित्ति तहाँ ही एक आवली पहले होती है। |
4 | चारों आयुका उदय भवके अंतिम समय तक रहता है परंतु उदीरणाकी व्युच्छित्ति एक आवली काल पहले होती है। |
5 | पाँचों निद्राओं का शरीर पर्याप्त पूर्ण होनेके पश्चात् इंद्रिय पर्याप्ति पूर्ण होने तक उदय होता है उदीरणा नहीं। |
6 | अंतरकरण करनेके पश्चात् प्रथम स्थितिमें एक आवली शेष रहनेपर-उपशम सम्यक्त्व सन्मुखके मिथ्यात्वका; क्षायिक सन्मुखके सम्यक् प्रकृतिका; और उपशम श्रेणी आरूढ़के यथायोग्य तीनों वेदोंका (जो जिस वेदके उदयसे श्रेणी चढ़ा है उसके उस वेदका) इन सात प्रकृतियोंका उदय होता है उदीरणा नहीं। |
7 | जिन प्रकृतियोंका उदय 14 वें गुणस्थान तक होता है उनकी उदीरणा 13 वें तक होती है (देखो ऊपर नं. 2)
ये सात अपवादवाली कुल प्रकृतियाँ 41 हैं - इनको छोड़कर शेष 107 प्रकृतियोंकी उदय और उदीरणामें स्वामित्वकी अपेक्षा कोई भेद नहीं। |
गुणस्थान | व्युच्छिन्न प्रकृतियाँ | अनुदीरणा | पुनः उदीरणा | उदीरणा योग्य | अनुदीरणा | पुनः उदीरणा | कुल उदीरणा |
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1 | आतप, सूक्ष्म, अपर्याप्त, साधारण, मिथ्यात्व=5 | तीर्थं., आहा. द्विक सम्य. मिश्र=5 | - | 122 | 5 | - | 11 |
2 | 1-4 इंद्रिय, स्थावर, अनंतानुबंधी चतुष्क=9 | नारकानुपूर्वी=1 | - | 112 | 1 | - | 111 |
3 | मिश्र मोहनीय=1 | मनु. तिर्य.देव-आनु.=3 | मिश्रमोह=1 | 102 | 3 | 1 | 100 |
4 | अप्र. चतु., वैक्रि. द्वि., नरकत्रिक, देवत्रिक, मनु.तिर्य. आनु., दुर्भग, अनादेय, अयश=17 | - | चारों. आनु., सम्य.=5 | 99 | 5 | 5 | 104 |
5 | प्रत्या. चतु., तिर्य. आयु. नीच गोत्र, तिर्य. गति, उद्योत=8 | - | आहारक द्विक=2 | 79 | - | 2 | 81 |
7 | सम्य. मोह, अर्धनाराच, कीलित, सृपाटिका=4 | - | - | 73 | - | - | 73 |
8/1 | हास्य, रति, भय, जुगुप्सा=4 | - | - | 69 | - | - | 69 |
8/अंत | अरति, शोक=2 | - | - | 65 | - | - | 65 |
9/15 | सवेद भागमें तीनों वेद=3 | - | - | 63 | - | - | 63 |
9/6 | क्रोध=1 | - | - | 60 | - | - | 60 |
9/7 | मान=1 | - | - | 59 | - | - | 59 |
9/8 | माया=1 | - | - | 58 | - | - | 58 |
9/9 | लोभ (बादर)=X | - | - | 57 | - | - | 57 |
10 | लोभ (सूक्ष्म)=1 | - | - | 57 | - | - | 57 |
11 | वज्र नाराच, नाराच=2 | - | - | 56 | - | - | 56 |
12/i | निद्रा, प्रचला=2 | - | - | 54 | - | - | 55 |
12/ii | 5 ज्ञानावरण, 4 दर्शनावरण, 5 अंतराय=14 | - | - | 52 | - | - | 52 |
13 | (नाना जीवापेक्षा) :- वज्रऋषभनाराच, निर्माण, स्थिर, अस्थिर, शुभ, अशुभ, सुस्वर, दुःस्वर, प्रशस्त-अप्रशस्त, विहायो, औदा.द्वि., तैजस, कार्माण, 6 संस्थान, वर्ण रस, गंध, स्पर्श, अगुरुलघु, उपघात, परघात, उच्छ्वास, प्रत्येक शरीर=29 मनुष्यगति, पंचेंद्रियजाति, सुभग, त्रिस, बादर, पर्याप्त, आदेय, यश, तीर्थंकर, उच्चगोत्र=10 (39) | - | तीर्थंकर=1 | 38 | - | 1 | 38 |
14 | x | x | x | x | x | x | x |