उपनीति
From जैनकोष
महापुराण/38/51-68 गर्भान्वयक्रियाश्चैव तथा दीक्षान्वपक्रिया:। कर्त्रन्वयक्रियाश्चेति तास्त्रिधैवं बुधैर्मता:।51। आधानाद्यास्त्रिपंचाशत् ज्ञेया गर्भान्वयक्रिया:। चत्वारिंशदथाष्टौ च स्मृता दीक्षान्वयक्रिया।52। कर्त्रन्वयक्रियाश्चैव सप्त तज्ज्ञै: समुच्चिता:। तासां यथाक्रमं नामनिर्देशोऽयमनूद्यते।53। अंगानां सप्तमादंगाद् दुस्तरादर्णवादपि। श्लोकैरष्टभिरुन्नेष्ये प्राप्तं ज्ञानलवं मया।54।
उपनीति क्रिया - आठवें वर्ष यज्ञोपवीत धारण कराते समय, केशों का मुंडन तथा पूजा विधिपूर्वक योग्य व्रत ग्रहण कराके बालक की कमर में मूंज की रस्सी बाँधनी चाहिए। यज्ञोपवीत धारण करके, सफेद धोती पहनकर, सिर पर चोटी रखने वाला वह बालक माता आदि के द्वार पर जाकर भिक्षा माँगे। भिक्षा में आगम द्रव्य से पहले भगवान् की पूजा करे, फिर शेष बचे अन्न को स्वयं खाये। अब यह बालक ब्रह्मचारी कहलाने लगता है।104-108।
संस्कार संबंधी एक दीक्षान्वय क्रियाएँ - देखें संस्कार - 2।