उष्ट्रकूट
From जैनकोष
क्षपणासार/505/ भाषा
—जैसे ऊँट की पीठ पिछाड़ी तौ ऊँची और मथ्य विषै नीची और आगै ऊँची और नीची हो है तैसे इहां (कृष्टियों में अपकृष्ट द्रव्य का विभाजन करने के क्रम में) पहले नवीन (अपूर्व) जघन्य कृष्टि विषै बहुत. बहुरि द्वितीयादि नवीन कृष्टिनि विषै क्रमतै घटता द्रव्य दै हैं। आगे पुरातन (पूर्व) कृष्टिनि विषै अधस्तन शीर्ष विशेष द्रव्य कर बँधता और अधस्तन कृष्टि द्रव्य अथवा उभय द्रव्य विशेषकरि घटता द्रव्य दीजियै है। तातै देयमान द्रव्यविषै 23 उष्ट्रकूट रचना हो है। (चारों कषायों में प्रत्येक की तीन इस प्रकार पूर्व कृष्टि 12 प्रथम संग्रह के बिना नवीन संग्रह कृष्टि 11)।
देखें कृष्टि ।