क्षेत्र 04 -2
From जैनकोष
प्रमाण |
मार्गणा |
गुणस्थान |
स्वस्थानस्वस्थान |
विहारवत्स्वस्थान |
वेदना व कषाय समुद्घात |
वैक्रियक समुद्घात |
मारणान्तिक समुद्घात |
उपपाद |
तैजस, आहारक व केवली समुद्घात |
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नं.१ पृ. |
नं. २ पृ. |
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१०-४३ |
मिथ्यादृष्टि |
१ |
सर्व पृ.३६ (देवसामान्य प्रधान) |
ति/सं; द्वि/असं;म×असं |
ति/सं |
ति/सं; द्वि/असं; म×असं (ज्योतिष देवों प्रधान ) |
सर्व |
मारणान्तिकवत् |
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३९-४३ |
सासादन |
२ |
त्रि./असं;म×असं पृ.४० (सौधर्मेशान प्रधान |
त्रि/असं;सं.घ.; म×असं |
त्रि/असं×सं.घ.; म×असं |
त्रि/असं×सं.घ.; म×असं |
त्रि/असं;म×असं |
मारणान्तिकवत् |
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३९-४३ |
सम्यग्मिथ्यात्व |
३ |
त्रि./असं;म×असं पृ.४० (सौधर्मेशान प्रधान |
त्रि/असं;सं.घ.; म×असं |
त्रि/असं×सं.घ.; म×असं |
त्रि/असं×सं.घ.; म×असं |
मारणान्तिकवत् |
|||
३९-४३ |
असंयत सम्यक्त्व |
४ |
त्रि./असं;म×असं पृ.४० (सौधर्मेशान प्रधान |
त्रि/असं;सं.घ.; म×असं |
त्रि/असं×सं.घ.; म×असं |
त्रि/असं×सं.घ.; म×असं |
त्रि/असं;म×असं |
मारणान्तिकवत् |
||
४४ |
संयतासंयत |
५ |
त्रि./असं;म×असं पृ.४० (सौधर्मेशान प्रधान |
त्रि/असं;सं.घ.; म×असं |
त्रि/असं×सं.घ.; म×असं |
त्रि/असं×सं.घ.; म×असं |
" |
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४६ |
प्रमत्त संयत |
६ |
च/असं;म/सं |
च/असं;म/सं |
च/असं;म/सं |
(विष्णुकुमार मुनिवत) च/असं; म/सं. |
चा/असं;म/असं |
आहारक: च/असं.म/सं. तेजस: आहारक/असं. केवली: |
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४७ |
अप्रमत्त संयत |
७ |
च/असं;म/सं |
च/असं;म/सं |
" |
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४७ |
उपशामक |
८-११ |
च/असं;म/सं |
" |
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४७ |
क्षपक |
८-१२ |
च/असं;म/सं |
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४८ |
सयोग केवली |
१३ |
च/असं;म/सं |
च/असं;म/सं |
दण्ड: च/ असं.म×असं. कपाट: ति/सं; म×असं प्रतर: वातवलय हीन सर्व लोकपूर्ण सर्वं |
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४८ |
अयोग केवली |
१४ |