करणानुयोग
From जैनकोष
सिद्धांतकोष से
रत्नकरंडश्रावकाचार श्लोक 44
लोकालोकविभक्तेर्युगपरिवृत्तेश्चतुर्गतीनां च। आदर्शमिव तथामतिरवैति करणानुयोगं च ॥44॥
= लोक अलोक के विभाग को, युगों के परिवर्तन को तथा चारों गतियों को दर्पण के समान प्रगट करनेवाले करणानुयोग को सम्यग्ज्ञान जानता है।
देखें अनुयोग ।
पुराणकोष से
श्रुतस्कंध के चार महाधिकारों मे द्वितीय महाधिकार । इसमें तीनों लोकों का वर्णन रहता है । महापुराण 2.99