अभिराम
From जैनकोष
जंबूदीप में पश्चिम विदेह क्षेत्र के चक्रवर्ती राजा अचल तथा उसकी रानी रत्ना का पुत्र । दीक्षा धारण करने को उद्यत देखकर इसके पिता ने इसका विवाह कर दिया और इसे ऐश्वर्य में योजित कर दिया । तीन हजार स्त्रियों के होते हुए भो यह मुनिव्रत के लिए उत्कंठित रहता था । यह असिधारा व्रत पालता और स्त्रियों को जैनधर्म का उपदेश देता था । अंत में शरीर से निर्मोही होकर इसने चौंसठ हजार वर्ष तक कठोर तप किया और मरण कर ब्रह्मोत्तर स्वर्ग में देव हुआ । वहाँ से च्युत होकर यह अयोध्या में भरत हुआ । पद्मपुराण 85.102-117, 166