कुलचर्या
From जैनकोष
त्रेपन क्रियाओं मे उन्नीसवीं क्रिया । वर्ण सस्कार हो जाने के पश्चात् पूजा करने, दान आदि देने तथा अपने कुछ के अनुसार असि, मति आदि छ: कर्मों में से किसी एक के द्वारा आजीविका करने को कुलचर्या कहते हैं । इसे कुल भी कहा गया है । महापुराण 38.55-63, 142-143, 39.72