खलीनित
From जैनकोष
भगवती आराधना / विजयोदया टीका/116/279/8 कायोत्सर्गं प्रपन्नः स्थानदोषान् परिहरेत्। के ते इति चेदुच्यते। ..... खलीनावपीडितमुखहय इव मुखचालनं संपादयतोऽवस्थानं, ..... इत्यमी दोषाः। =
- लगाम से पीड़ित घोड़ेवत् मुख को हिलाते हुए खड़े होना खलीनित दोष है।
कायोत्सर्ग का अतिचार—देखें व्युत्सर्ग - 1.10।