चित्त
From जैनकोष
स.सि./२/३२/१८७/१० आत्मनश्चैतन्यविशेषपरिणामश्चित्तम् ।=आत्मा के चैतन्यविशेषरूप परिणाम को चित्त कहते हैं (रा.वा./२/३२/१४१/२२)। सि.वि./वृ./७/२२/४९२/२० स्वसंवेदनमेव लक्षणं चित्तस्य। =चित्त का लक्षण स्वसंवेदन ही है।नि.सा./ता.वृ./११६ बोधो ज्ञानं चित्तमित्यनर्थान्तरम् । =बोध, ज्ञान व चित्त ये भिन्न पदार्थ नहीं हैं। द्र.सं./टी./१४/४६/१० हेयोपादेयविचारकचित्त...। =हेयोपादेय को विचारने वाला चित्त होता है।
सं.श./टी./५/२२५/३ चित्तं च विकल्प:। =विकल्प का नाम चित्त है। २. भक्ष्याभक्ष्य पदार्थों का सचित्ताचित्त विचार–देखें - सचित्त।