चित्
From जैनकोष
न्या.वि./वृ./१/८/१४८/९ चिदिति चिच्छक्तिरनुभव इत्यर्थ:। =चित् अर्थात् चित् शक्ति का अनुभव। अन.ध./२/३४/१५१ अन्वितमहमिकाया प्रतिनियतार्थावभासिबोधेषु। प्रतिभासमानमखिलैर्यद्रूपं वेद्यते सदा सा चित् । =अन्वित और ‘अहम्’ इस प्रकार के संवेदन के द्वारा अपने स्वरूप को प्रकाशित करने वाले जिस रूप का सदा स्वयं अनुभव करते हैं उसी को चित् या चेतन कहते हैं।