गुरु मूढ़ता
From जैनकोष
रत्नकरण्ड-श्रावकाचार/२४ सग्रन्थारम्भहिंसानां संसारावर्त्तवर्तिनाम् । पाखण्डिनां पुरस्कारो ज्ञेयं पाखण्डिमोहनम् ।२४। = परिग्रह, आरम्भ और हिंसा सहित, संसार चक्र में भ्रमण करने वाले पाखण्डी साधु तपस्वियों का आदर, सत्कार, भक्ति-पूजादि करना सब पाखण्डी या गुरु मूढ़ता है ।
देखें मूढ़ता ।