स्तनलोलुप
From जैनकोष
दूसरे नरक का ग्यारहवां इंद्रक बिल । इसकी चारों दिशाओं में एक सौ चार और विदिशाओं में सौ श्रेणिबद्ध बिल है । हरिवंशपुराण 4.79, 115-116
दूसरे नरक का ग्यारहवां इंद्रक बिल । इसकी चारों दिशाओं में एक सौ चार और विदिशाओं में सौ श्रेणिबद्ध बिल है । हरिवंशपुराण 4.79, 115-116