जितेंद्रिय
From जैनकोष
स.सा./मू./३१ जो इंदिये जिणित्ता णाणसहावाधिअं मुणदि आदं। तं खलु जिदिंदियं ते भणंति जे णिच्छिदा साहू।३१। =जो इन्द्रियों को जीतकर ज्ञानस्वभाव के द्वारा अन्य द्रव्य से अधिक आत्मा को जानते हैं, उन्हें निश्चयनय में स्थित साधु हैं वे वास्तव में जितेन्द्रिय कहते हैं।
त.अनु./७६ इन्द्रियाणां प्रवृत्तौ च निवृत्तौ च मन: प्रभु:। मन एव जयेत्तस्माज्जिते तस्मिन् जितेन्द्रिय: ।७६। =इन्द्रियों की प्रवृत्ति और निवृत्ति दोनों में मन प्रभु है, इसलिए मन को ही जीतना चाहिए। मन के जीतने पर मनुष्य जितेन्द्रिय होता है।
- इन्द्रिय व मन को जीतने का उपाय– देखें - संयम / २ ।