तत्
From जैनकोष
स.सि./१/२/८/३ तदिति सर्वनामपदम् । सर्वनाम च सामान्ये वर्तते। =‘तत्’ यह सर्वनाम पद है। और सर्वनाम सामान्य पद में रहता है। (रा.वा./१/२/५/१९/१९); (ध.१३/५,५,५०/२८५/११) ध.१/१,१,३/१३२/४ तच्छब्द: पूर्वप्रक्रान्तपरामर्शी इति। =‘तत्’ शब्द पूर्व प्रकरण में आये हुए अर्थ का परामर्शक होता है।
पं.ध./३१२ ‘तद् ...भावविचारे परिणामो...सदृशो वा। =तत् के कथन में सदृश परिणाम विवक्षित होता है।
२. द्रव्य में तत् धर्म– देखें - अनेकान्त / ४ ।