तपोशुद्धि व्रत
From जैनकोष
ह.पु./३४/१०० मन्त्र–२,१,१,५,१,१+१९,३०,१०,५,२,१। विधि–अनशन के २; अवमौदर्य का १; वृत्ति परिसंख्यान का १; रसपरित्याग के ५; विविक्त शय्यासन का १; कायक्लेश का १; इस प्रकार बाह्य तप के ११ उपवास। प्रायश्चित्त के १९; विनय के ३०, वैयावृत्ति के १०, स्वाध्याय के ५; व्युत्सर्ग के २; ध्यान का १; इस प्रकार अन्तरंग तप के ६७ उपवास। कुल–७८ उपवास बीच के १२ स्थानों में एक पारणा।