नित्य मरण
From जैनकोष
राजवार्तिक/7/22/2/550/20 तत्र नित्यमरणं समयसमये स्वायुरादीनां निवृत्ति:। तद्भवमरणं भवांतरप्राप्त्यनंतरोपश्लिष्टं पूर्वभवविगमनम्। = प्रतिक्षण आयु आदि प्राणों का बराबर क्षय होते रहना नित्यमरण है (इसको ही भगवती आराधना व भावपाहुड़ में ‘अवीचिमरण’ के नाम से कहा गया है)।
विशेष जानकारी के लिए देखें मरण - 1.3।