दक्षिण प्रतिपत्ति
From जैनकोष
आगम में आचार्य परम्परागत उपदेशों को ऋजु व सरल होने के कारण दक्षिणप्रतिपत्ति कहा गया है। धवलाकार श्रीवीरसेनस्वामी इसकी प्रधानता देते हैं। (ध.५/१,६,३७/३२,६); (ध.१/प्र.५७); (ध.२/प्र.१५)।
आगम में आचार्य परम्परागत उपदेशों को ऋजु व सरल होने के कारण दक्षिणप्रतिपत्ति कहा गया है। धवलाकार श्रीवीरसेनस्वामी इसकी प्रधानता देते हैं। (ध.५/१,६,३७/३२,६); (ध.१/प्र.५७); (ध.२/प्र.१५)।