दर्प
From जैनकोष
भ.आ./वि./६१३/८१२/३ दर्पोऽनेकप्रकार:। क्रीड़ासंघर्षं, व्यायामकुहकं, रसायनसेवा, हास्य, गीतशृङ्गारवचनं, प्लवनमित्यादिको दर्प:। =दर्प के अनेक प्रकार हैं–क्रीड़ा में स्पर्धा, व्यायाम, कपट, रसायन सेवा, हास्य, गीत और शृंगारवचन, दौड़ना और कूदना ये दर्प के प्रकार हैं।