सिद्धांतकोष से
सामान्य परिचय
तीर्थंकर क्रमांक |
17 |
चिह्न |
छाग |
पिता |
सूरसेन |
माता |
श्रीकान्ता |
वंश |
कुरु |
उत्सेध (ऊँचाई) |
35 धनुष |
वर्ण |
स्वर्ण |
आयु |
95000 वर्ष |
पूर्व भव सम्बंधित तथ्य
पूर्व मनुष्य भव |
सिंहरथ |
पूर्व मनुष्य भव में क्या थे |
मण्डलेश्वर |
पूर्व मनुष्य भव के पिता |
विपुलवाहन |
पूर्व मनुष्य भव का देश, नगर |
जम्बू वि.सुसीमा |
पूर्व भव की देव पर्याय |
सर्वार्थसि. |
गर्भ-जन्म कल्याणक सम्बंधित तथ्य
गर्भ-तिथि |
श्रावण कृष्ण 10 |
गर्भ-नक्षत्र |
कृत्तिका |
गर्भ-काल |
अन्तिम रात्रि |
जन्म तिथि |
वैशाख शुक्ल 1 |
जन्म नगरी |
हस्तनागपुर |
जन्म नक्षत्र |
कृत्तिका |
योग |
आग्नेय |
दीक्षा कल्याणक सम्बंधित तथ्य
वैराग्य कारण |
जातिस्मरण |
दीक्षा तिथि |
वैशाख शुक्ल 1 |
दीक्षा नक्षत्र |
कृत्तिका |
दीक्षा काल |
अपराह्न |
दीक्षोपवास |
तृतीय भक्त |
दीक्षा वन |
सहेतुक |
दीक्षा वृक्ष |
तिलक |
सह दीक्षित |
1000 |
ज्ञान कल्याणक सम्बंधित तथ्य
केवलज्ञान तिथि |
चैत्र शुक्ल 3 |
केवलज्ञान नक्षत्र |
कृत्तिका |
केवलोत्पत्ति काल |
अपराह्न |
केवल स्थान |
हस्तनागपुर |
केवल वन |
सहेतुक |
केवल वृक्ष |
तिलक |
निर्वाण कल्याणक सम्बंधित तथ्य
योग निवृत्ति काल |
1 मास पूर्व |
निर्वाण तिथि |
वैशाख शुक्ल 1 |
निर्वाण नक्षत्र |
कृत्तिका |
निर्वाण काल |
सायं |
निर्वाण क्षेत्र |
सम्मेद |
समवशरण सम्बंधित तथ्य
समवसरण का विस्तार |
4 योजन |
सह मुक्त |
1000 |
पूर्वधारी |
700 |
शिक्षक |
43150 |
अवधिज्ञानी |
2500 |
केवली |
3200 |
विक्रियाधारी |
5100 |
मन:पर्ययज्ञानी |
3350 |
वादी |
2000 |
सर्व ऋषि संख्या |
60000 |
गणधर संख्या |
35 |
मुख्य गणधर |
स्वयंभू |
आर्यिका संख्या |
60350 |
मुख्य आर्यिका |
भाविता |
श्रावक संख्या |
100000 |
मुख्य श्रोता |
नारायण |
श्राविका संख्या |
300000 |
यक्ष |
गन्धर्व |
यक्षिणी |
महामानसी |
आयु विभाग
आयु |
95000 वर्ष |
कुमारकाल |
23750 वर्ष |
विशेषता |
चक्रवर्ती |
राज्यकाल |
23750+23750 |
छद्मस्थ काल |
16 वर्ष |
केवलिकाल |
23734 वर्ष |
तीर्थ संबंधी तथ्य
जन्मान्तरालकाल |
1/2 पल्य+5000 वर्ष |
केवलोत्पत्ति अन्तराल |
1/4 पल्य–9999997250 वर्ष |
निर्वाण अन्तराल |
1/4 पल्य–1000 को. वर्ष |
तीर्थकाल |
1/4 पल्य–9999997250 वर्ष |
तीर्थ व्युच्छित्ति |
❌ |
शासन काल में हुए अन्य शलाका पुरुष |
चक्रवर्ती |
स्वयं |
बलदेव |
❌ |
नारायण |
❌ |
प्रतिनारायण |
❌ |
रुद्र |
❌ |
महापुराण /64/ श्लोक ‘‘पूर्वभव नं.3 में वत्स देश की सुसीमा के राजा सिंहरथ थे (2−3) फिर दूसरे भव में सर्वार्थसिद्धि में देव हुए (10) वर्तमान भव में 17 वें तीर्थंकर हुए।5। विशेष परिचय–देखें तीर्थंकर - 5.।
पुराणकोष से
अवसर्पिणी काल के दु:षमा सुषमा नामक चतुर्थ काल में उत्पन्न शलाकापुरुष, छठें चक्रवर्ती एवं सत्रहवें तीर्थंकर । ये सोलह स्वप्नपूर्वक कृत्ति का नक्षत्र में श्रावणकृष्णा दशमी की रात्रि के पिछले प्रहर में हस्तिनापुर के कौरववंशी एवं काश्यपगोत्री महाराज शूरसेन की रानी श्रीकांता के गर्भ में आये । वैशाख शुक्ल प्रतिपदा के दिन आग्नेय योग में इनका जन्म हुआ । क्षीरसागर के जल से अभिषेक करने के पश्चात् इंद्र ने इनका नाम कुंथु रखा । इनका जन्म तीर्थंकर शांतिनाथ के बाद आधा पल्य समय बीत जाने पर हुआ था । इनकी आयु पचानवें हजार वर्ष, शरीर की अवगाहना पैंतीस धनुष और कांति तप्त स्वर्ण के समान थी । कुमारकाल के तेईस हजार सात सी पचास वर्ष बीत जाने पर इनका राज्याभिषेक हुआ और इतना ही समय और निकल जाने पर इन्हें चक्रवर्तित्व मिला । राज्य-भोगों से विरक्त होकर इन्होंने पुत्र को राज्य दे दिया । ये विजया नामक पाल की में बैठकर सहेतुक वन में पहुँचे । वहाँ इन्होंने वेला (दो दिन का उपवास) किया । वैशाख शुक्ल प्रतिपदा के दिन सायंकाल के समय एक हजार राजाओं के साथ ये दीक्षित हुए । दीक्षित होते ही ये मन:पर्ययज्ञानी हो गये । इस समय कृत्ति का नक्षत्र था । इसी नक्षत्र मे 16 वर्ष तप करने के बाद तिलक वृक्ष के नीचे चैत्र शुक्ल तृतीया की सायं वेला में ये केवली हुए । इनके संघ में स्वयंभू आदि पैंतीस गणधर, साठ हजार मुनि, साठ हजार तीन सौ पचास आर्यिकाएँ, तीन लाख श्राविकाएँ और दो लाख श्रावक थे । एक मास की आयु शेष रहने पर ये सम्मेदगिरि आये । इन्होंने प्रतिमायोग धारण किया और वैशाख अमल प्रतिपदा के दिन रात्रि के पूर्व भाग में कृत्ति का नक्षत्र में निर्वाण प्राप्त किया । दूसरे पूर्वभव में ये वत्स देश की सुसीमा नगरी के राजा सिंहरथ थे । तपश्चर्या पूर्वक मरण होने से ये पहले पूर्वभव में सर्वार्थसिद्धि के अनुत्तर विमान में अहमिंद्र हुए । वहाँ से च्युत होकर इस पर्याय में आये और तीर्थंकर हुए । महापुराण 2. 132, 64. 2-5, 10-15, 22-28, 36-54, पद्मपुराण -5. 215,223, 20.15-35, 53, 61-68, 87, 115, 121, हरिवंशपुराण 1.19, 45. 20, 60.154-198, 341-349, पांडवपुराण 6.27,51 वीरवर्द्धमान चरित्र 18. 101-109
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