क्षेत्रवान्
From जैनकोष
वसुनंदी श्रावकाचार/31 आगासमेव खित्तं अवगाहणलक्खण जदो भणियं। सेसाणि पुणोऽखित्तं अवगाहणलक्खणाभावा। =एक आकाश द्रव्य ही क्षेत्रवान् है क्योंकि उसका अवगाहन लक्षण कहा गया है। शेष पाँच द्रव्य क्षेत्रवान् नहीं हैं, क्योंकि उनमें अवगाहन लक्षण नहीं पाया जाता ( पंचास्तिकाय / तात्पर्यवृत्ति/27/57/7 ) ( द्रव्यसंग्रह टीका/ अधिकार 2 की चूलिका/77/7)। (विशेष देखें आकाश - 3)।
षड्द्रव्यों में क्षेत्रवान् व अक्षेत्रवान् विभाग (देखें द्रव्य - 3)