चक्रायुध
From जैनकोष
सिद्धांतकोष से
1. ( महापुराण/सर्ग/श्लोक नं. )।
पूर्वभव नं.13 में मगध देश के राजा श्रीषेण की स्त्री आनंदिता थी। (62/40)। पूर्वभव नं.12 में भोमिज आर्य था। (62/357-358)। पूर्वभव नं.11 में सौधर्म स्वर्ग में विमलप्रभ देव हुआ।(62/376)। पूर्वभव नं.10 में त्रिपृष्ठ नारायण का पुत्र श्रीविजय हुआ। (62/153)। पूर्वभव नं.9 में तेरहवें स्वर्ग में मणिचूलदेव हुआ। (62/411)। पूर्वभव नं.8 में वत्सकावती देश की प्रभाकरी नगरी के राजा स्तिमितसागर का पुत्र नारायण ‘अनंतवीर्य’ हुआ। (62/414)। पूर्वभव नं.7 में रत्नप्रभा नरक में नारकी हुआ। (63/25)। पूर्वभव नं.6 में विजयार्धपर गगनवल्लभनगर के राजा मेघवाहन का पुत्र मेघनाद हुआ। (63/28-29)। पूर्वभव नं.5 में अच्युत स्वर्ग में प्रतींद्र हुआ (63/36)। पूर्वभव नं.4 में वज्रायुध का पुत्र सहस्रायुध हुआ। (63/45)। पूर्वभव नं.3 में अधोग्रैवेयक में अहमिंद्र हुआ। (63/138,141)। पूर्वभव नं.2 में पुष्कलावती देश में पुंडरीकनी नगरी के राजा धनरथ का पुत्र दृढ़रथ हुआ। (63/142-144)। पूर्वभव नं.1 में सर्वार्थसिद्धि में अहमिंद्र हुआ। (63/336-37)। वर्तमान भव में राजा विश्वसेन का पुत्र शांतिनाथ भगवान् का सौतेला भाई (63/414) हुआ। शांतिनाथ भगवान् के साथ दीक्षा धारण की (63/476)। शांतिनाथ भगवान् के प्रथम प्रधान गणधर बने। (63/489)। अंत में मोक्ष प्राप्त किया (63/501)। ( महापुराण/63/505-507 ) में इनके उपरोक्त सर्व भवों का युगपत् वर्णन किया है।
2. ( महापुराण/59/ श्लोक नं.)
–पूर्वभव नं.3 में भद्रमित्र सेठ; पूर्वभव नं.2 में सिंहचंद्र, पूर्वभव नं.1 में प्रीतिंकर देव था।(316)। वर्तमान भव में जंबूद्वीप के चक्रपुर नगर का राजा अपराजित का पुत्र हुआ।239। राज्य की प्राप्ति कर।244। कुछ समय पश्चात् अपने पुत्र रत्नायुध को राज्य दे दीक्षा धारण कर मोक्ष प्राप्त की।245।
3. स्व.चिंतामणि के अनुसार यह इंद्रायुध का पुत्र था। वत्सराज के पुत्र नागभट्ट द्वि.ने इसको युद्ध में जीतकर इससे कन्नौज का राज्य छीन लिया था। नागभट्ट व इंद्रायुध के समय के अनुसार इसका समय वि.840-857 (ई.783-800) आता है। ( हरिवंशपुराण/ प्रस्तावना 5/पं.पन्नालाल)।
पुराणकोष से
(1) जंबूद्वीप के चक्रपुर नगर के राजा अपराजित और उसकी रानी सुंदरी का पुत्र । इसका पिता इसे राज्य देकर दीक्षित हो गया था । कुछ समय बाद इसने भी अपने भाई वज्रायुध को राज्य देकर पिता से दीक्षा ली थी और मोक्ष पद पाया था । तीसरे पूर्वभव में यह भद्रमित्र नामक सेठ, दूसरे पूर्वभव में सिंहचंद्र और पहले पूर्वभव में प्रीतिंकर देव था । महापुराण 59.239-245, 316, हरिवंशपुराण 27.89-93
(2) राजा विश्वसेन और रानी यशस्वती का पुत्र । ये तीर्थंकर शांतिनाथ के साथ ही दीक्षित होकर उनके प्रथम गणधर हुए । ये पूर्वांग के पारदर्शी विद्वान् थे । आयु के अंत मे इन्होंने निर्वाणपद पाया था । महापुराण 63.414, 476, 489, 501, हरिवंशपुराण 60. 348 पांडवपुराण 5.115, 124-129 तेरहवें पूर्वभव में ये मगधदेश के राजा श्रीषेण की आनंदिता नामक रानी थे । बारहवें पूर्वभव में उत्तरकुरु में आर्य, ग्यारहवें पूर्वभव में सौधर्म स्वर्ग में विमलप्रभ नामक देव, दसवें पूर्वभव में त्रिपृष्ठ नारायण के श्रीविजय नामक पुत्र, नवें पूर्वभव में तेरहवें स्वर्ग में मणिचूल नामक देव, आठवें पूर्वभव में वत्सकावती देश की प्रभाकरी नगरी के राजा स्तिमितसागर के अनंतवीर्य नामक पुत्र, सातवें पूर्वभव में रत्नप्रभा नरक में नारकी, छठे पूर्वभव मे विजया के गगनवल्लभ नगर के राजा मेघवाहन के मेघनाद नामक पुत्र, पांचवें पूर्वभव में अमृत स्वर्ग में प्रतींद्र, चौथे पूर्वभव में वज्रायुध के पुत्र सहस्रायुध, तीसरे पूर्वभव में अधोग्रैवेयक मे अहमिंद्र, दूसरे पूर्वभव में पुष्कलावती देश की पुंडरीकिणी नगरी के राजा घनरथ के दृढ़रथ नाम के पुत्र, और पहले पूर्वभव में ये अहमिंद्र थे । महापुराण 62.153, 340, 358, 376, 411-414, 63.25, 28-29, 36, 45, 138-144, 336-337
(3) विद्याधरवंशी राजा चक्रधर्मा का पुत्र । यह चक्रध्वज का पिता था । महापुराण 5.50-51