अनिंदितता
From जैनकोष
(1) रत्नपुर नगर के राजा श्रीषेण की रानी और उपेंद्रसेन की जननी । आदित्यगति और अरिंजय चारण मुनियों को राजा द्वारा दिये गये दान की अनुमोदना से इसने उत्तरकुरु की आयु का बंध किया था । अंत में विष-पुष्प को सूंघने से इसका मरण हुआ तथा यह मरकर आर्य हुई । महापुराण 62.340 -350, 357-358
(2) एक देवी । यह मेरु की पूर्वोत्तर दिशा में नंदन वन के बीच बलभद्रक कूट के आठवें चित्रक कूट में निवास करती है । हरिवंशपुराण - 5.328-333