कल्पव्यवहार
From जैनकोष
अंगबाह्यश्रुत के चौदह प्रकीर्णकों में नवम प्रकीर्णक । इसमें तपस्वियों के करणीय कार्यों की विधि का तथा अकरणीय कार्यों के हो जाने पर उनकी प्रायश्चित-विधि का वर्णन किया गया है । हरिवंशपुराण - 10.125,हरिवंशपुराण - 10.135
अंगबाह्यश्रुत के चौदह प्रकीर्णकों में नवम प्रकीर्णक । इसमें तपस्वियों के करणीय कार्यों की विधि का तथा अकरणीय कार्यों के हो जाने पर उनकी प्रायश्चित-विधि का वर्णन किया गया है । हरिवंशपुराण - 10.125,हरिवंशपुराण - 10.135