द्रोणमुख
From जैनकोष
सिद्धांतकोष से
तिलोयपण्णत्ति/4/1400 दोणमुहाभिधाणं सरिवइवेलाए वेढियं जाण। =समुद्र की वेला से वेष्टित द्रोणमुख होता है। धवला 13/5,5,63/335/10 समुद्रनिम्नगासमीपस्थमवतरन्नौ निबहं द्रोणमुखं नाम। =जो समुद्र और नदी के समीप में स्थित है, और जहाँ नौकाएँ आती जाती हैं, उसकी द्रोणमुख संज्ञा है।
महापुराण/16/173,175 भवेद् द्रोणमुखं नाम्ना निम्नगातटमाश्रितम् ।...।173। शतान्यष्टौ च चत्वारि द्वे च स्युर्ग्रामसंख्यया। राजधान्यास्तथा द्रोणमुखकर्वटयो: क्रमात् ।175। =जो किसी नदी के किनारे पर हो उसे द्रोणमुख कहते हैं।173। एक द्रोणमुख में 400 गाँव होते हैं।175। त्रिलोकसार/674-676 (नदी करि वेष्टित द्रोण है।)
पुराणकोष से
नदी के तटवर्ती चार सौ ग्रामों का समूह । यह व्यवसायों का केंद्र होता है । यहाँ सभी जातियाँ रहती है । महापुराण 16.173, 175, हरिवंशपुराण - 2.3