अनुपसंहारी हेत्वाभास
From जैनकोष
श्लोकवार्तिक पुस्तक संख्या ४/न्या.२७३/४२५/२२ तथैवानुपसंहारी केवलान्वयिपक्षकः।
= व्यतिरेक नहीं पाया जाकर जिसका केवल अन्वय ही वर्तता है उसकी पक्ष या साध्य बनाकर जिस अनुमानमें हेतु दिये जाते हैं, वे हेतु अनुपसंहारी हेत्वाभास हैं।