भूतवाद
From जैनकोष
पृथिवी, जल, वायु और अग्नि के सयोग से चैतन्य की उत्पत्ति तथा वियोग से उसके विनाश की मान्यता । इस वाद को मानने वाले आत्मा, पुण्य-पाप और परलोक नहीं मानते । इसकी मान्यता है कि जो प्रत्यक्ष सुख को त्याग कर पारलौकिक सुख की कामना करता है, वह दोनों लोकों के सुखों से वंचित हो जाता है । महापुराण 5.29-35