मिश्रकेशी
From जैनकोष
(1) रुचकगिरि के उत्तरदिशावर्ती आठ कूटों में दूसरे अंककूट की वासिनी एक देवी । यह चमर लेकर जिनमाता की सेवा करती है । हरिवंशपुराण - 5.715,हरिवंशपुराण - 5.717
(2) अंजना की एक सखी । इसने अंजना से कहा था कि विद्युत्प्रभ को छोड़कर तूने पवनंजय को ग्रहण कर के अज्ञानता की है । इसे सुनकर पवनंजय अंजना से विमुख हो गया था । उसने अंजना को दु:ख देने का निश्चय किया था । पद्मपुराण - 15.154-155, 196-197, 217 देखें पवनंजय और अंजना