मेरुपंक्तिव्रत
From जैनकोष
एक व्रत । इसमें जंबूद्वीप, पूर्वघातकीखंड, पश्चिम घातकीखंड, पूर्व पुष्करार्ध, पश्चिम पुष्करार्ध इस प्रकार ढाई द्वीपों के पाँच मेरु, प्रत्येक मेरु के चार-चार वन तथा प्रत्येक वन के चार-चार चैत्यालयों को लक्ष्य करके अस्सी उपवास और बीस वन संबंधी बीस वेला किये जाते हैं । सौ स्थानों की सौ पारणाएँ करने का विधान होने से इसमें दो सौ बीस दिन लगते हैं । हरिवंशपुराण - 34.85